हाँ ! अमितेश भाई
प्रेम में तलाक नहीं दिया जा सकता
और ना ही टांगा जा सकता है इसे सूली पर
प्रेम तो जिया जीता है
उम्मीदों के साथ
हसरत भरी निगाहों से
खोजा जाता है
सूने आकाश में
बनाते बिगडते नक्षत्रों
और टूटते हुए तारों को देखकर
मांगीजाती है मन्नते
पुरे होने कि प्रेम की
और जनाब इसे पाने के लिए गुजरना होता है 'ब्लैक होल' से
बनानी होती है इसी दुनिया में एक दुनिया
मेरे अनुज
ये कोई समझौता नहीं है
समझ वाला समझदार प्रेम
अक्सर दम तोड़ देता है
आदमी और प्रेम में यही तो फर्क है
आदमी समझ के साथ जीता है और प्रेम इसके बिना
अरे भाई
अपनी तोयही एक पूंजी है
और दिल के खाते
पड़ा हुआ बैलेंस है
और तुम ही कहो जो बसा है धमनियों के साथ
उस प्रेम से तलाक कैसा
ये कविता हमारे प्रिय सीनियर मनोज कुमार की है . ये उनकी एक कविता पर मेरी की हुई प्रतिक्रिया की प्रतिक्रया है. उनके आग्रह और मेरे प्रति स्नेह के कारण यहाँ छापी जा रही है. कविता देखने के लिए लिंक पर जायें.
http://jaaneanjaane.blogspot.com/2010/04/blog-post_19.html
4 टिप्पणियां:
अच्छी नसीहत भरी रचना..अच्छा लगा मनोज जी को पढ़कर.
वाह बलिहारी जाऊं ....उनके प्रश्न और आपके उत्तर पर ..कमाल का लिखा है ..आभार
yah kavita aap ke liye hai rachit hai kripya shabdo per dhyan de
सुंदर रचना
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