बुधवार, 2 मार्च 2011

नचारी


नचारी भगवान शिव के लिये गाये जाना वाला गीत है. मिथिलांचल के इन गीतों में शिव के अस्त-व्यस्त छवि जो लोक में व्याप्त है उसकी छवि मिलती है. ऐसे अव्यवस्थित शिव कैसे गौरी के साथ वैवाहिक जीवन में व्यवस्थित रहेंगे यहीं इन गीतों की मुख्य चिंता है.
नचारी
आजु नाथ एक व्रत महा सुख लागत हे,
आहे तोहे शिव धरु नट भेष कि डमरू बजावथ हे।
तोहे गौरी कहई छी नाचय कि हम कोना क नाचब हे,
चारी सोच मोही होय कि हम कोना बांचब हे।
अमिय चूई भूमि खसत बाघम्बर जागत हे,
आहे होयत बाघम्बर बाघ बसहो धरि खायत हे।
सिर स संसरत सांप  कि भूमि लोटायत हे,
आहे कार्तिक पोसल मयुर सेहो धरि खायत हे।
जटा स छलकत गंगा दसो दिस पाटत हे,
आहे होयत सहस्र मुख धार समेटलो नै जायत हे।
मुंडमाल छूटि खसत मसानी जागत हे,
आहे तोहे गौरी जेबहु पराय कि नाच के देखत हे।
भनहि विद्यापति गाओल गावि सुनाओल हे,
आहे राखल गौरी के मान चारु बचावल हे।
२.
एना जे सुतईत आंख मसानी, कोना क चलतई काज
 जगा दे भोले बाबा को मनादे भोले बाबा को
इ भोले जोगिया आक धतुर में मतंग छथि,
नगरा बताह जका सुतल इ अर्धंग छथि,
इ अपराधी भूत के संगी, रूप सदाशिव भावे
जगा दे भोले बाबा को, मना दे भोले बाबा को
बसहा सवारी शिव के, घर नै घरारी एको धुर बटाईया,
अपने भिखारी शिव दुनिया लेल अन्न धन छई,
जटा स निकले गंगा छीट छीट के गंगाधार जगा दे
भोले बाबा को मना दे भोले बाबा को