शुक्रवार, 18 दिसंबर 2009

मदारी,सपेरा,जोगी….

मदारी,सपेरा,जोगी….
लगभग छः – सात महिने की एकरसता और उब को तोडने के लिये गर्मियों की छुट्टियों में घर जाना काफ़ी मददगार होता है। हर बार कुछ नये कार्यों की योजना बना के जाता हूं पर योजनायें धरी की धरी रह जाती है और छुट्टियां मां और बाबुजी के स्नेह तले अकर्मण्यता में बीतती है। इस बार गरमियों की छुट्टी में ऐसे ही एक आलस भरी दोपहरी में घर में लेटा हुआ था तभी एक आवाज सुनाई दी…किसी के गाने की…शैली जोगियों वाली थी। गौर किया तो लगा की बहुत दिन बाद ऐसी आवाज सुनाई दे रही है। बिस्तर से उठ के भागा तो सामने वाले घर के दरवाजे पर एक व्यक्ति हाथ में एक डिब्बा लिये झनझनाते हुए मुख पर कपडे का मुखौटा डाले जो बटनों से जडा था गा रहा था। उस घर के ही बच्चे उसे घेरे हुए थे। कदम बरबस उसकी ओर उठ गये। गाना गाने के दर्म्यान ही घर में से किसी ने निकल कर उसे चावल दे दिया। गाना खत्म करने के बाद वह दुसरे दरवाजे की तरफ़ चला गया । जाते जाते लेकिन मेरी स्मृतियों को कुरेद गया। बचपन में हम इस मुखौटे वाले जिसे बाकुम कहते थे के आते ही उसे घेर लेते थे…दुरी बनाकर क्योंकि वह कभी कभी डरावनी आवाज निकालता था और हम डर जाते। उसके झनझनाते डिब्बे की आवाज की लय में अद्भुत आकर्षण था। बाद में इस ‘बाकुम’ की हम नकल भी करते थे।
सपेरें तो पहले बहुत आते थे तरह तरह के सांप लिये हुए । सारे बच्चे उसके पीछे एक दरवाजे से दूसरे दरवाजे घुमते रहते थे। इसके लिये उसे बीन भी नहीं बजाना पडता था।
इसी तरह सारंगी बजाने वाले योगी भी आते थे कंधे पर बडा झोला लिये। उनकी सारंगी से मनुष्यों जैसी आवाज निकलती थी। देर तक उनका गाना सुनने की लालसा में उन्हे भिक्षा देने में विलम्ब कर दिया जाता था। बच्चों को डराया जाता था बदमाशी करोगे तो बाबाजी इसी झोला में ले जायेंगे।
विद्यालय से लौटते हुए भीड लगी देख कर हम समझ जाते थे कि मदारी का खेल लगा है। भीड में धंस कर हम अपनी जगह बना कर खेल देखने लग जाते थे। मदारी के साथ एक जमुरा और ताबीज होता था और वह कुछ भी गायब करने की क्षमता रखता है ऐसी मान्यता थी। वो दोनों अपने वाक जाल में तमाशाइयों को उलझाये रखते थे। इसे तो हमने फ़िल्मों में भी देखा है।
एक लकडी के घोडे वाला आता था ढोलक वाले के साथ। लकडी के रंगीन घोडे की बीच में जगह बना कर घुसे उसके पैरों में घुंघरु और हाथों में चाबुक होता था । उसे दुल्दुलवा घोडा कहते थे। वह यहां से वहां ढोलक के थाप पर कुदते हुए अपना खेल दिखाता था। इन सबका आना हमारे लिये अतीव प्रसन्न्ता का विषय था।
पर ये सारी चीजं लुप्तप्राय हो गयी है। सपेरे और मदारी तो कभीकभी स्टेशन या कचहरी जैसी जगहों पर दिख भी जाते हैं पर बाकुम, दुल्दुलवा घोडा, जोगी…नहीं दीखते। मुझे ठीक से याद नहीं की इन्हें अंतिम बार कब देखा था। लेकिन यह तय है कि पिछ्ले बारह सालों में तो नहीं देखा। शहरीकरण और रोजी रोटी का दबाव इनके विलुप्त होने के मुख्य कारणों में से एक है। इनका जिक्र तो किस्से कहानियों में भी नही है। उत्तर आधुनिकता के इस समय में हम सचमुच कुछ रोचक कलाओं से वंचित होतें जा रहें हैं। अपने बच्चो को देने के लिये हमारे पास अत्याधुनिक यंत्र और प्ले स्कुल तो हैं लेकिन समाज को जीवंत रखने वाली ये कलायें नहीं है।

अमितेश कुमार
amitesh0@gmail .com
vatsrj@yahoo.com

सोमवार, 7 दिसंबर 2009

भगवती गीत

मैं इस बार अपने घर से अपनी माँ की डायरी उठा के ले आया हूँ. उसमे मिथिला में होने वाली संस्कारों और लोक व्यवहारों से संबधित बहुत से गीत है. इस श्रृंखला में पहली बार भगवती गीतों के साथ शुरू कर रहा हूँ.
भगवती गीत
1
दुर्गा नाम तोहार हे जननी…
कालीनाम तोहार…
खड्ग खप्पर दाहिन कर राखल
निशुम्भ के कैलऊ संहार हे जननी…
दुर्गा नाम तोहार…
रक्त बीज महिषासुर मारल
केलउ असुर संहार हे जननी
दुर्गा नाम तोहार…
निसी वासर कैलास शिखर पर
मिली क कैलौ विहार हे जननी
दुर्गा नाम तोहार…
हम सन पतित अनेको तारल
हमरो करब उद्धार हे जननी
दुर्गा नाम तोहार…
2
हम अबला अग्यान हे जननी-2
धन समपति किछु नहिं हमरा
नहिं अछि किछुओ ध्यान हे जननी
हम अबला…
नहिं अछि बल, नहिं अछि बुद्धि,
नहिं अछि किछुओ ग्यान हे जननी
हम अबला…
कोन विधि हम भवसागर उतरब
अहिं के जपब हम नाम हे जननी
हम अबला…
3
आब नहिं बाचत पति मोर हे जननी आब नहिं बाचत पति मोर
चारु दिस हम हेरि बैसल छी किया नै सुनई छी दुख मोर हे जननी
आब नहिं बाचत…
उलटि पलटि जौ हम मर जायब हसत जगत क लोक हे जननी
आब नहिं बाचत पति मोर…
एहि बेर रक्षा करु हे जननी पुत्र कहायब तोर हे जननी
आब नहिं बाचत पति मोर…
4
सुनु सुनु जगदम्ब आहां हमर अवलम्ब , आहां रहि जईयौ प्रेम के मंदिरवा में
फ़ूल लोढब गुलाब पुजा करब तोहार … आहां रहि जईयौ प्रेम के ….
कंचन धार मंगायेब, अमृत अल सजायेब मां के आगे लगायेब प्रेम के मंदिरवा में
सेवक कहथि करजोरी मईया विनती सुनु मोर आहां रहि…
5
हे जगदम्ब जगत मां अम्बे प्रथम प्रणाम करई छी हे!
नहिं जानि हम सेवा पुजा अटपट गीत गवई छी हे!
सुनलऊ कतेक अधम के मइय़ा मनवांछित फ़ल दई छी हे!
सुत संग्राम चरण सेवक के जनम क्लेश हरई छी हे!
सोना चांदी महल अटारी सबटा व्यर्थ बुझई छी हे!
एक अहां के प्रेम चाहई छी प्रान प्रदान करई छी हे!
दुख के हाल कहु कि मईया आशा ले जिवै छी हे!
हमरा देखि क आख मुनइ छी पापी जानि डरई छी हे!
प्रेमी जग स पावि निराशा नयन नीर बहवई छी हे !
नोर बटोरि आहां लय मैया मोती हार गथई छी हे!
भजई छी ताराणि निशिदिन किया छी दृष्टि के झपने।
6
अवई अछि नाव नहिं भव स कदाचित ललित छी अपने।
वैजन्ती मंगला काली शिवासिनी नाम अछि अपने।
हमर दुख कियो नहि बुझय कहब हम जाय ककरा स कृपा करू आजु हे जननी बेकल भय आवि बैसल छी।
7
वीनती सुनु जगतारिणि मईया शरण आहांक हम आयल छी
कतहु शरण नहिं भेंटल जननी जग भरि स ठुकरायल छी
कत जन पतितक कष्ट हरण भेल आहां हमर किया परतारई छी
वामही अंग वामही कर खप्पर, दाहीन खडग विराजई छी
अरुण नयन युग अंग कपइत, हंसइत अति विकराल छी
छनहिं कतेक असुर के मारल, कतेक भयल जिवताने छी
8
करु भवसागर पार हे जननी करु भवसागर पर
के मोरा नईया के खेवैया के उतारत पार हे जननी
अहीं मोरा नइया अहीं खेवैया अहीं उतारब पार हे जननी
के मोरा माता के पिता के सहोदर भाई हे जननी
अहीं मोरा माता अहिं मोरा पिता अहिं सहोदर भाइ हे जननी
9
काली नाम तोहार हे जननी!… काली नाम तोहार
जाही दिन अवतार भयो है पर्वत पर असवार हे जननी!
ताही दिन महिषासुर मारल सब देवन करथि पुकार हे जननी!
कलयुग द्वापर त्रेता सतयुग सब युग नाम तोहार हे जननी!
तुलसीदास प्रभु तुम्हरे दरस को गले में मुण्ड के माल हे जननी!
10
युग युग स नाच नचा रहलंउ भव मंच ऊपर जननी हमरा
सत जानु एही में कनिको नहिं आनंद भेंट्य जननी हमरा
युग कखनो भुतल समीरन में, कखनो आकाश धरातल में, कखनो जल बीच हमरा नचवई छी सतत जननी हमरा
अगणित युग क चक्कर कटलहुं, अगणित वेष धारण कयलयुं, नहिं भेल अन्त इ लिखलाहा घुरमुरिया ई जननी हमरा
मन हमर अशान्त रहीत नहीं जौ कसीतउ नहीं विविध प्रलोभन में त बुझि लिय सकितहूं नहिं नचा कय दिवस एना जननी हमरा
सेवक जन ई अभिनय स यदि भेलउ खुशी, बड ईनाम दिय नहीं त ई नाटक मंडल स झट झारि दिअ जननी हमरा
11
वरदान अहां स कोना मांगु आशीषक आश किया नै करु
कतबो यदि पुत्र कपुत हुये पर मातु कुमातु कतहु ना सुने जौ मातु कुमातु हुये त कहु फ़ेर ममता नाम किया नै धरु
देखि बाट बहुत भुतिआए गेलहु पथ बीच भ्रमर पथ भ्रष्ट भेलऊ करु मुक्त शारदे सब भय स हे आदि शक्ती कल्याण करु