बुधवार, 6 अक्तूबर 2010

दिल्ली में बस्तर बैंड

बैंड नाम सुनते ही हमारे जेहन में क्या आता है? शादी विवाह में बजने वाले बैंड या रॉक बैंड (लोकप्रियता के साथ शोर दोनों का केंद्रीय भाव है). इससे इतर भी कोई बैंड हो सकता है?
जी हाँ! ऐसे एक बैंड की कल्पना को साकार किया है अनूप रंजन पांडे ने बस्तर बैंड के रूप में . यह बस्तर के आदिवासियों का बैंड है. इस बैंड ने बस्तर की विभिन्न आदिम जनजातियों के वाद्य,नृत्य, संगीत इत्यादि को मिलाकर प्रस्तुति तैयार की   है , इसकी रूपरेखा और निर्देशन अनूप रंजन का है. इस प्रस्तुति में हम ऐसे वाद्य को देखते है जिन्हें हमने कभी देखा ही नहीं जैसे आम की चौड़ी पटरी का वाद्य ,लकड़ी के चिडियों का वाद्य इत्यादि.इन सभी वाद्यों की स्वतन्त्र ध्वनियाँ मिलकर पूरी प्रस्तुति का संगीत रचती हैं.प्रस्तुति में विभिन्न शैलियों की टकराहट भी है और उनका समंजन भी. दर्शक के रूप में हम इन सभी से अनजान होकर भी कौतुहल से भर जाते हैं और प्रस्तुति में ध्यान गड़ा देते हैं, अंत तक पहुंचते पहुंचते यह अनुष्ठान जैसा लगने लगता है. मेघदूत के मंच की सीमा कलाकरों को बांधती है और प्रस्तुति अपने भीतर से जहाँ पहुँचने की जिद कराती है वहाँ पहुँच नहीं पाती. वैसे यह प्रस्तुति अभी निर्माण की अवस्था में है और निर्देशक को चाहिए की इसे थोड़ा और तराशे.
बस्तर बैंड ने कम समय में ही अपनी पहचान बना ली है. पिछले कुछ महीने से यह देश के विभिन्न शहरों में लगातार प्रदर्शन कर रही है. यह बैंड बस्तर की उस पहचान को धोने का प्रयास करती है जो उसपे चस्पा कर दिया गया है. आदिम जनजातियों पर हो रहे चौतरफा आक्रमणों के बीच में यह बैंड उस संस्कृति की जीवन्तता को बनाए रखने के साथ साथ अपनी अस्मिता को भी मुख्य धारा के सामने रख रहा है.
अनूप रंजन पांडे प्रतिष्ठित संस्कृतिकर्मी है.हबीब तनवीर के नया थियेटर के सक्रिय सदस्य है. राजरक्त,हिरमा की अमर कहानी इत्यादि नाटकों में इनका अभिनय प्रशंसित हुआ है. आदिवासी वाद्य यंत्रो के सरक्षण की धुन का परिणाम है बस्तर बैंड. इस के जरिये वे हबीब साहब के काम को आगे बढ़ा रहे है. हबीब साहब ने अपनी प्रस्तुतियों में लोककलाओ का सार्थक उपयोग किया था उन्हें मंच दिया था. 
बस्तर बैंड आदिम कला को रंगमंच देता है उसको आधुनिक दर्शक समाज देता है. बस्तर बैंड से आगे बहुत उम्मीदे हैं. 

बस्तर  बैंड की प्रस्तुति पर एक दर्शकीय अनुभव. यह प्रस्तुति मैंने राष्ट्रमंडल के अंतर्गत हो रहे कला के उत्सव देशपर्व  में देखी.