सोमवार, 25 अक्तूबर 2010

रंग समीक्षा

मैकबेथ मैकबेथ 


अब जब आधुनिकता की परियोजना पर सवाल उठाये जाने लगे हैं, ज्ञानोदय और पुनर्जागरण के महा वृतांतो का स्थापत्य चरमराने लगा है, क्या रंगमंच इन बहसों को सशक्त तरीके से उठा सकता है ? आप इसका जवाब सोचते रहें, मैं कहूँगा हां. रंगमंच ने यह काम शुरू कर दिया है. इसका ताजातरीन उदाहरण संसप्तक द्वारा की गयी प्रस्तुति ‘मैकबेथ मैकबेथ’ है. यह मूल बंगाली नाटक का हिन्दी संस्करण है. आलेख और निर्देशन तोरित मित्रा का है. नाटक महान शेक्सपियर की ख्यात कृति ‘मैकबेथ’ से आधार ग्रहण करती है. ‘मैकबेथ’ को केन्द्र में रखते हुए औद्योगिक क्रान्ति और  पुनर्जागरण  (प्रस्तुति जिसे व्यापार प्रतियोगिता और  नवजागरण कहती है) के पीछे की मंशा को उजागर करती है. प्रस्तुति में डंकन की मौत पूंजीवाद का रास्ता साफ़ करती है और इसके कारक बनते है मैकबेथ और लेडी मैकबेथ. यद्यपि इसके पीछे उनके निजी कारण भी हैं पर वे महान कारण का हवाला देकर छुपाये जा रहें हैं. नाटक ‘मैकबेथ’ को एक बहस में तब्दील कर देती है. मैकबेथ जो बुढा होकर वर्तमान का अभियोगी है  यह स्वीकार करता है कि उससे भूल हुई थी और वह पूंजीवाद के हाथों का खिलौना बन गया था. प्रस्तुति वर्तमान और अतीत के सहारे पूंजीवाद से लेकर वैश्वीकरण के पीछे की राजनीति को स्पष्ट करता है. चुटीलेपन के लिए कुछ वास्तविक नाम का सहारा भी लेता है. प्रस्तुति में यह बहस घुला मिला हुआ है. नाटक इस तथ्य को रेखांकित करती है की किसी भी प्रक्रिया को लाने के लिए कितने दबाव कार्य करते हैं जिन्हें अपरिहार्यता के आड़ तले छुपाया जाता है. नाटक यह दिखाता है की पश्चिम बाज़ार के विस्तार के लिए कैसे पूर्व से मिलने को आतुर था.  
नाटक में शेक्सपियर को भी आलोचना के घेरे में लाया जाता है और उसके आलोचकों का हवाला दिया जाता है. लेकिन अंततः उसकी महानता को रेखांकित करता है जिसने बड़े ही सशक्त ढंग से अपने समय के विरोधों को अपने नाटकों में चित्रित किया है. विखंडन की तकनीक का सहारा लेकर   नाटक को पुराने अर्थ से मुक्त कर प्रस्तुति उसे विमर्श का माध्यम बना देती है. बच्चो के गीत ‘बाबा ब्लैकाशीप’ नाटक में कई बार प्रयुक्त हुआ है जो नव सामंती अर्थ तंत्र को चित्रित करती है. प्रस्तुति की खूबी यह है कि इतने गंभीर विमर्श को समेटने के साथ उसको संभालती भी है बिना हल्का हुआ लेकिन रंगमंचीय स्तर पर कई खामियां भी हैं.
प्रस्तुति में कुछ पात्रों का अभिनय लाउड हो गया है जिसकी आवश्यकता नहीं थी. नाटक में हिन्दी की व्याकरणिक भूले हैं और अनुवाद में तरलता नहीं है जो कई दर्शको नहीं पचता. एक प्रस्तुति को समग्र बनाने के लिए सभी पात्रों पर मेहनत की जानी चाहिये, नाटक में कुछ पात्र बिलकुल फ़्लैट ढंग से अपने सम्वाद बोलते दिखे बिना शरीर भाषा का इस्तेमाल किये. वैसे यह पहली  प्रस्तुति है और खामियां सुधारी जा सकती है.
नाटक का दृश्यबंध लगभग सादा है. एक प्लेटफार्म है जो अतीत का व्यंजक है जिससे निकल पात्र वर्तमान में हस्तक्षेप करते हैं. प्रस्तुति में तीन जादूगर सरीखे चरित्र हैं जो सूत्रधार का काम करते हैं वे नाटक के भीतर भी है और बाहर भी. वे आगे की कथा का संकेत देते है और टिपण्णी भी करते हैं. ये चरित्र रोचक हैं इनको और करियोग्राफ किया जाये तो बेहतर होगा. समग्रत: नाटक की शक्ति है की वह एक बहस को केंद्र में रखता है और उसका निर्वाह करता है. आगे नाटक और बेहतर और तीखा होता जाएगा ऐसी उम्मीद है. कुछ संवाद दिलचस्प है जीनमें एक है; ‘राजाओं से भी खतरनाक है नए विचार’. अतः उनकी ह्त्या कर दो पर विचार कि हत्या होती है क्या ?
नाटक-मैकबेथ मैकबेथ
समूह-संसप्तक
निर्देशन और आलेख-तोरित मित्रा

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