बुधवार, 15 सितंबर 2010

लिटिल बिग ट्रेजडीज

राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय रंगमंडल विदेश के ख्यात नाट्य निर्देशकों के साथ प्रस्तुत करता रहा है। इस कडी में उसने अभी ताज़ा प्रस्तुति की है,‘लिटिल बिग ट्रेज़डिज़’जो रुसी कवि एल्क्ज़ेंडर पुष्किन की कहानियों पर आधारित है। इसका निर्देशन किया है तुर्कमेनिस्तान के ‘ओअव्ल्याकुली खोद्जाकुली’ ने। खोदज़ाकुली तुर्कमेनिस्तान ड्रामा एंड म्युजिकल थियेटर के कला निदेशक रहे और रूस, उज़्बेकिस्तान, कज़ाकिस्तान, किर्गिस्तान, उक्रेन व तुर्कमेनिस्तान के रंगमंच में सक्रिय रहें हैं। इससे पहले भी वे रा.ना.वि. तृतीय वर्ष के साथ किंग लियर की प्रस्तुति कर चुके हैं 2009 में। खोदजाकुली के कार्य में रंग परिकल्पना मुख्य है, वे अपनी प्रस्तुति  को इसी के इर्द गिर्द बुनते हैं। इस प्रस्तुति में भी आकर्षक दृश्यबंध बनाया गया है पर आलेख को समर्थन ना दे पाने की वज़ह से वह निस्तेज़ हो जाता है और उसका महत्त्व बस एक चमत्कार तक सीमित होकर रह जाता है। रंगमंच   चमत्कार के भरोसे नहीं किया जा सकता।
प्रस्तुति में तीन कहानियां हैं जिनका केन्द्र क्रमशः इर्ष्या, व्यभिचार और अहंकार हैं। ये मनुष्य की सहज प्रवृतियां हैं। पहली कहानी में एन्टोनियो सैलियरी प्रकृति प्रदत्त प्रतिभा के अन्यायिक वितरण पर असंतोष करता है और अपने दोस्त मोज़ार्ट से इर्ष्या। इसी इर्ष्या के वशिभूत मोज़ार्ट को रोकने के लिये वह उसे ज़हर दे देता है। दूसरी कहानी डान जुआन की है जो एक विधवा से प्रेम करना चाहता है जिसके पति की भी हत्या उसने ही की है, ये अलग बात है कि वह अपनी अनुपस्थिति में अपने प्रेमिका के साथी को मार देता है. अपनी पहचान छुपाकर वह विधवा को प्रेम के लिये राजी कर लेता है पर पहचान अधिक देर तक छुपा नहीं पाता। विधवा डोन्या एना स्तब्ध रह जाती है और मृत्यु की कामना करती है। डान जुआन को विधवा के पति की आत्मा आकर दंडित करती है। तीसरी कहानी में प्लेग से ग्रस्त एक शहर में कुछ लोग कब्रिस्तान में प्लेग के सम्मान में जश्न मना रहें हैं और गीत गा रहें हैं। पादरी कब्रिस्तान में आकर शांति भंग करने के लिये उनको कोसता है। पादरी की बात सुनकर उस समूह का अध्यक्ष सोच में पड जाता है और उसके साथी जश्न मनाते रहते हैं।
तीनों कहानी में अलग अलग पात्र मुख्य भूमिका में हैं बाकी के पात्र कोरस की भुमिका निभाते हैं। पूरी प्रस्तुति के दौरान पात्र मंच पर ही रहते हैं। दृश्य बंध एक कैनोपी का है जिसके उपरी सिरे पर एक मुखाकृति है और वह प्लेटफ़ार्म से रस्सी से जुडा है। समस्त एक्शन इसी प्लेटफ़ार्म पर होता है। इसके पीछे कि हिस्सों को ढक दिया गया जो नेपथ्य का कार्य करता है। प्रकाश और तकनीक के सहारे यह दृश्य बंध नाटक में कुछ जगह पर चौंकाता है पर उसका साम्य आलेख से नहीं बन पाता। किंग लियर की प्रस्तुति के दौराम खोदजाकुली ने तंबु और रस्सी के सहारे कल्प्नाशील दृश्यबंध रचा था जो सादगी के साथ आलेख को आधार देता था और अभिनेताओं की गति इस दृश्यबंध के अनुकुल हो गयी थी। इस प्रस्तुति में अभिनेताओं की देहगति के साथ संवाद की और दृश्यबंध की संगति नहीं बन पाती, जो प्रस्तुति को उबाउ बना देती है। पहली कहानी संक्षिप्त है पर बाकी की दो अनावश्यक रूप से लम्बी हैं। काजल घोष का संगीत प्रस्तुति का उल्लेखनीय पक्ष है जिसे उन्होंने थाल, गिलास, कंचे की धवनियों से तैयार किया है। पुश्किन की एक कविता को भी प्रस्तुति में शामिल किया गया है पर वह भी प्रभावित नहीं करती। संगति के अभाव में कहानियों का मूल कथ्य दबा ही रह गया है और ब्रोश्योर आप ना पढें तो आपको हो सकता है पता भी ना चले।
विदेशी निर्देशकों के आगमन को रंगमंच उत्सुक निगाहों से देखता है। इससे पहले कार्ल वेबर. पीटर ब्रुक और फ़्रित्ज़ बेनेवित्ज़ जैसे निर्देशकों के आगमन ने रंगमंच को एक उर्जा प्रदान की थी। यह प्रस्तुति रंगमंच को कहीं लेकर नहीं जाती बल्कि उसे विभ्रम में छोड जाती है।एक बात तो रेपर्टरी को तय कर लेना चाहिये कि उसे प्रयोगधर्मी प्रस्तुतियां करते वक्त दर्शकों को भी ध्यान में रखना चाहिये। प्रस्तुति के निस्तेज होने का कारण यह भी है कि निर्देशक और अभिनेता के बीच संवाद का माध्यम दुभाषिया है और खबर यह भी है कि रंगमंडल के कुछ अभिनेता इस प्रस्तुति से संतुष्ट नहीं थे। गौरतलब है कि ये प्रस्तुति आगामी राष्ट्रमंडल खेलों के लिये तैयार किये गये हैं जिसमें आगे रंगमंडल की कुछ और प्रस्तुतियां होंगी और पूर्वोत्तर का नाट्य उत्सव इसी सिलसिले में सम्पन्न हुआ है।