सोमवार, 14 जुलाई 2008

नींद आने तक

तुम सो जाओ
पर ख्वाब हमारे लेकर
और मैं
खोजूंगा
अंधेरे में तुम्हे
नींद के आ जाने तक

गुरुवार, 5 जून 2008

एक कविता छोटी सी

दुनिआदारी सीखो
आजकल मुझे समझाया जा रहा है
ये कौन लोग है, वही जिन्होंने कहा था
इमानदारी सर्वोत्तम निती है
सत्यमेव जयते
karm करो fal की chinta मत करो

मंगलवार, 4 मार्च 2008

विरोध

विरोध
पौने दस बज चुके थे ,मै पन्द्रह मिनट लेट हो चुका था(हमेशा की तरह )। बस से उतरने के बाद मैंने अंदाजा लगाया ...पांच मिनट और ...और मैं क्लास में पहुँच जाऊंगा..क्लास भी अगर देरी से शुरू हुई हो पांच दस मिनट(जो आम तौर पे होता है ) तो चिंता की ....तभी फ़ोन का vibration घर घाराया और मेरे विचारो का क्रम टुटा। फ़ोन निकाल के देखा ..विजय का फ़ोन था ...फ़ोन रेसिव करते ही प्रश्न उछला कहाँ हो?बस पहुँचने वाला हूँ ...तुम कहाँ ..सुनो ,उसने बात काटते हुए कहा... मेरी attandence लगा देना ...क्यों?तुम नही आ रहे...नहीं, मैं एक प्रोटेस्ट मार्च में जा रहा हूँ...प्रोटेस्ट मार्च कैसा? ...अर वही "विश्विद्यालय के अनियमितता" केविरोध में...मेरी attandence लगा देना please...और फ़ोन कट गया.

सोमवार, 14 जनवरी 2008

मेरी कविता

मैं खड़ा हूँ ,
ठिठक कर।
आगे बढ़ने से पहले
जांचने के लिए
उन रिश्तो कि बुनियादों को
जिन्हें मैंने बनाए है
असमंजस मैं आ जाता हूँ हर बार
रिश्ते लगते हैं ,मजबूत भी,खोखले भी,
किसे छोडू ,किसे साथ लूँ
निर्णय कठिन है
सोचने के बाद बहुत,
व्यावसायिक रवैया अपनाता हूँ
सभी के साथ निभाता चला जाता हूँ