शुक्रवार, 15 अप्रैल 2011

तुमने कहा था- स्मृति

तुमने कहा था
करनी ही  होगी सत्य की पड़ताल.
उस सत्य की जो अनिर्मित है ,
उस सत्य की जो अनिश्चित है ,
उस सत्य की जिसमे संसार निहित है ,
या फिर उस सत्य की जिससे जग निर्मित है,
तुमने कहा था करनी ही होगी सत्य की पड़ताल.
मैंने भी माना करनी ही होगी सत्य की पड़ताल 

सत्य जो तुम्हारी लेखनी में है ,
सत्य जो तुम्हारी शक्ति में है ,  
सत्य जो उस अशांति में है जो इस शक्ति का स्रोत है ,
यह वही सत्य है जिसने आसक्ति और अनासक्ति के बीच की सीमाए धुंधली कर  दी है,
हां यह सत्य है की इस सत्य पर  मेरा संदेह है     
मगर संदेह हमेशा से असत्य  है फिर उसका क्या
मगर संदेह हमेशा से असंतोष  है फिर उसका क्या 
संदेह तो छनिक है , शाश्वत है तो बस मेरे और तुम्हारे बीच  का सत्य   
वह सत्य जिसमे किसी के जीवन खोने का भय है ,
वह सत्य जिसमे भरोसे के टूटने का भय है 
मगर भय तो छनिक है ,शाश्वत है तो मेरे तुम्हारे बीच का सत्य ,
तुम्हारी अशांति की निरंतरता में मेरी शांति को स्थिरता मिल जाने का सत्य