शुक्रवार, 11 सितंबर 2009

बारिश के मौसम में

बरसात के दिन आए ....
भइया अब तो मन कर रहा है की बारिश में निकल के दोनों हाथ फैला के गोल गोल घुमाते हुए जोर जोर से गाया जाए की एक मुट्ठी लाई मेघवा बिलाईये हमारे बचपन की बात है जब आसमान में बादल घिरते ही सारे बच्चे आसमन की तरफ़ मुह करके गोल गोल घूमते हुए ऐसा गाने लगते थे। ऐसा तब भी होता था जब बारिश का मौसम हो और बारिश ना हो रहा है तो इसी प्रक्रिया में तब हम ये गाया करते एक मुठी सरसों पिट पिट बरसो। तीन दिन से दिल्ली में लगातार बारिश हो रही है । पिछले छे सालो से दिल्ली में हूँ ऐसी बारिश तो कभी नही देखि । दिल्ली का मौसम इतना उदार कभी ना था। ये अलग बात है की मौसम की इस उदारता से ट्राफिक का नालो का स्वास्थ्य ख़राब हो गया है। हम तो ऐसी ही बारिश के आदि रहे है जब लगातार बारिश होने लगाती तो वो दिन याद किया जाने लगता और अनुमान लगाया जाता की अछा बारिश शनिवार को शुरू हुई है अब ये शनिवार को ही ख़तम होगी। हमारे बचपन के दिनों में हमारे गाव या शहर की धरती की मिट्टी पर कंक्रीट का बोझा नही था तो बारिश के मौसम की मिटटी की खुशबू भी विभोर कर देती थी। बारिश के दिनों में लिट्टी और चोखा खाने का मजा ही कुछ और था। स्कुल जाने के लिए कोई जिद नही करता था और दिन भर सोने का बहाना मिलता। मैदान गिला होने की वजह से आउटडोर खेल तो नही खेल सकते थे तो ये मौसम लूडो,व्यापार, शतरंज जैसो खेलो के लिए था। व्यापार ऐसा खेल था जो दिन भर चलता रह सकता था और इसमे झगडे की सम्भावना कम थी। हमने तो एक नया खेल विकसित कर लिया था जिसे हम बैंक बैंक कहते थे। बारिश के पानी से जब आँगन लबालब भर जाता तो उसमे नाव चलाने का मजा ही कुछ अलग था। नहाने के लिए तो मम्मी के मना कराने के बाद भी बारिश में ही नहा लेते थे। गीली मिटटी पे पैर चिपकाते हुए चलना या बारिश के जमा पानी में छाप छाप करना ..... काफ़ी यादे है याद कर रहा हूँ तो लग रहा है की सब आँख के सामने सिनेमा के स्क्रीन की तरह आ जा रहे हैं... अब मैं बड़ा हो गया हूँ... इस अहसाह के बाद एक दिन बारिश के पानी में छपाछप की तो अगल बगल देख लिया की कहीं कोई है तो नही । बारिश में ज्यादा भीग नही सकता क्योंकि अपनी देखभाल का जिमा अपना ही है। खेलने के लिए कंप्युटर है...पीने के लिए चाय वो भी ख़ुद से बनाना है...नो कोई मम्मी की तरह स्नेह देने वाला है ना पापा की तरह डांटने वाला ना भाई के साथ पहले वाला झगडा है...कुछ है तो बस अधूरे होने का अहसास ....