शनिवार, 27 नवंबर 2010

दहलीज़

उड़ो
पंख मत फैलाना ...
हद है हमारी नज़र
अब ताक में है चिड़िया
कब पलक झपके
...कर ले पार दहलीज...

1 टिप्पणी:

कुमार राधारमण ने कहा…

बहुत अच्छी कविता है। बहुत कम शब्दों में एक बड़ा व्यंग्य। सोचने पर विवश करती,मौलिक रचना।