इतने दर्शक मैंने अपने गाँव में देखे हैं जो नाटक
शुरू होने के इतने देर पहले मंचन स्थल पर आ जाए थोडा नर्वस शुरू में हुआ पर बाद में
संभल गया. मंच पर अनुराधा कपूर, महेश आनंद, हृषिकेश सुलभ जैसे दिग्गज जो बैठे थे। संतोष
यह रहा की मैंने ठीक ठीक निबाह लिया। विलंभ से शुरू होने के बाद भी श्रोता जमे रहे
और हल्ला नहीं मचाया
बेगुसराय में रंग-ए -माहौल
का उद्घाटन हुआ. उद्घाटन का सञ्चालन मैंने
ही किया. अनुराधा कपूर, महेश आनंद, हृषिकेश सुलभ, कुमार अनुज, रजनीश कुमार , प्रमोद
शर्मा सभी ने संक्षिप्त और सारगर्भित बोला. अच्छी खासी भीड़ शांत भाव से सबको सुन रही
थी और सही मौको पर ताली के साथ अपनी प्रतिक्रिया दे रही थी. दर्शको को कोई हड़बड़ी नहीं
थी. सीमा विश्वास अभिनित 'जीवित या मृत' देखने का बाद वो देर तक ताली बजाते रहे और
उनको सम्मानित किये जाने तक रुके रहे दर्शको का ऐसा प्रेम इन शहरों में ही सम्भव है.
लोग याद नहीं रखते ऐसा कहा जाता है खासकर बुद्धिजीवी,
साहित्यकार और रंगकर्मी को ...लेकिन बेगुसराय ने रामशरण शर्मा और दिनकर को याद रखा
है ...
उत्सव जब शहर का हो जाता है तब उसके लिए शहर तैयारी
करता है. गुंजन ने अपने प्रयत्न से इसे शहर के उत्सव में बदल दिया है, और माहौल भी
बनाया है. सबसे अच्छी बात है लोगो को पैसे दे कर नाटक देखने के लिए प्रोत्साहित करना।
डोनेशन कार्ड के नामा पर ही सही लोग पास ले रहे हैं पैसे दे रहे हैं और नाटक देखने
आ रहे हैं. पटना के अलावा बेगुसराय बिहार का एक महत्वपूर्ण संस्कृति केंद्र रहा भी
है और रहेगा भी ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए. बिहार में लेकिन यही दो जिले नहीं है न!
बाकी बिहार में ऐसे प्रयत्न होने चाहिये. आप क्या कहते हैं ?
मंच पर आलोचक, रानावि निदेशक, समाज सेवी, नेता, प्रशासक
और व्यवसाई मौजूद थे लेकिन किसी ने मुद्दे से बाहर कुछ नहीं बोला. रंगमंच सबकी चिंता
में था और किसी को समय के लिए पर्ची नहीं नहीं बढ़नी पड़ी. इतने श्रोताओं के सामने भी
संयम रखा गया, दिल्ली में ऐसा कहाँ होता है . पचास की संख्या हम बहुत मानते हैं और
वक्ता को चुप कराना कभी कभी कठिन हो जाता है लेकिन यहाँ ऐसा नहीं हुआ।
अच्छा लगता ही है .. होटल से बाहर निकलते वक्त रिसेप्शन पर खड़ा लड़का अखबार आपकी तरफ बढ़ा के कहे की सर आपकी फोटो छपी है देख लीजिये
1 टिप्पणी:
बहुत अच्छी लगी !
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