गुरुवार, 29 मार्च 2012

सफ़र के कुछ बिखरे हुए बिंब...

बैंग्लोर से शिमोगा की बसयात्रा के दौरान पहला पड़ाव

बस से बाहर झांकने का नजारा

शिमोगा बस अड्डे के बाहर

सागर में मेरा कमरा

नीनासम मेस का भोजन

पत्ता नहीं है केले के पत्ते जैसा है

हेग्गुड़ु का चौक जिसे सर्किल बोलते हैं

सेमिनार कक्ष के बाहर बना अल्पना

यक्षागान का ग्रीन रूम

अंतिम पंकित में खड़ा हूं..और यह तंबु का भी पिछला हिस्सा है

मंच के पास से भीड़ का नजारा

मंच पर प्रदर्शक

बैंग्लोर के रेस्टोरेंट में मैग्लोर की मछली

तिरुपति का विहंगम दृश्य

अरूंधती नाग

रंग शंकरा

बैंग्लोर का ट्रैफ़िक

जोग जल प्रपात

डेविड, मैं, बालकृष्ण, विनय, प्रवीण और ड्राईवर, मथुरा जी फ़ोटो ले रहें हैं.

यहां सेविंग कराया..यहीं पे लोहिया जी की तस्वीर लगी ह

नीनासम पुस्तकालय, यहां चप्पल उतार कर अंदर जाने का नियम है

नीनासम प्रेक्षागॄह

अल्पना रोज बदल जाता था

नीनासम परिसर
अल्पना फ़िर बदल गया



यक्षगान का बाक्स आफ़िस

इस दुकान से लगभग सभी ने खरीददारी की, इसमें बिकने वाले कपड़े यहीं बनते हैं
वापसी
हेग्गुड़ु में हुए सेमिनार के लिये की गई यात्रा का कुछ चित्रात्मक वृतांत...शब्द में भी दर्ज करने की कोशिश जारी है...

1 टिप्पणी:

Punj Prakash ने कहा…

बधाई..... हमारी भी यादें ताज़ा हो गईं