अपने कॉलेज के पत्रिका हस्ताक्षर के लिए कविता तलाशते हुए एक कविता देखि जो बहुत अच्छी लगी। कवि हैं लाल्टू जी
शब्द
सीखो शब्दों को सही सही
शब्द जो बोलते है
और शब्द जो चुप होते है
अक्सर प्यार और नफरत
बिना कहे कहे जाते है
इनमे ध्वनि नही होती पर होती है
बहुत घनी गूंज
जो सुनाई पड़ती है धरती के इस पार से उस पार तक
व्यर्थ ही कुछ लोग चिंतित है
की नुक्ता सही लगा या नही
कोई फर्क नही पङता
की कौन कह रहा है देस देश को
फर्क पङता है जब सही आवाज नही निकलती
जब किसी से बस इतना ही कहना हो
की तुम्हारी आंखों में जादू है
फर्क पङता है
जब सही ना कही गई हो एक सहज सी बात
की ब्रह्माण्ड के दुसरे कोने से आया हूँ
जानेमन छूने के लिए।
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